Healthy Eating ( स्वस्थ आहार )

As per Ayurveda “food can act as medicine if consumed properly.” If we eat food suited to our prakriti (physiology), and follow a sattvic (life supporting) routine that improves digestion, our body will reap the benefits and our days will be happier, healthier and filled with real vitality — at any stage of life. To help with consumption of right food in right quantity and at right time, we have created this section where we would provide tips on a weekly basis.


Tip of the week

संग्रहणी यानी Irritable Bowel Syndrome जिसमे कि रोगी को बार बार मल त्याग के लिए जाना पड़ता है लेकिन तसल्ली फिर भी नहीं मिलती, इससे पीड़ित लोगों के लिए भुना जीरा, सेंधा नमक एवं काली मिर्च मिली तक्र परम उपयोगी है| वात रोगों में खट्टी तक्र सोंठ एवं सेंधा नमक मिलाकर, पित्त रोगों में शक्कर युक्त मीठी तक्र एवं कफज रोगों में सोंठ, काली मिर्च एवं पिप्पली युक्त तक्र को अच्छा माना गया है|

Week: 32

ग्रीष्म ऋतु में, कमजोर व्यक्ति को, मूर्छा, भ्रम, दाह एवं रक्त पित्त यानी bleeding disorders के रोगियों को तक्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए| ऐसे में शक्कर मिले छाछ का प्रयोग हितकारी होता है| वहीँ शीत काल में, अग्नि की मंदता की स्थिति में, वात विकारों में, अरुचि में एवं रस-वाहिनियों के अवरोध में तक्र अमृत के समान लाभकारी है|


Week: 31

दही में पानी मिलाकर तक्र एवं छाछ का निर्माण किया जाता है| साथियो, हम में से अधिकतर लोग तक्र एवं छाछ को एक ही मानते हैं| जबकि ऐसा नहीं है. दही को मथ कर उसमे से मक्खन निकाल कर एवं मथते समय आधा भाग जल मिला कर, तक्र तैयार किया जाता है| जबकि मथते समय काफी अधिक मात्रा में जल मिलाया जाए तो छाछ तैयार हो जाता है| शास्त्रों के अनुसार तक्र तासीर में गर्म एवं त्रिदोष-हर है, जबकि छाछ को शीतल, वात पित्त नाशक किन्तु कफ कारक बतलाया गया है|


Week: 30

रात्रि में दही नहीं खाना चाहिए, प्रतिदिन दही नहीं खानी चाहिए, गरम करके दही नहीं खानी चाहिए| बिना घी के, बिना शक्कर के, बिना मूंग की दाल के, बिना शहद के अथवा बिना आंवलो के दही नहीं खाना चाहिए| यानी कि इनमे से कम से कम एक द्रव्य को दही के साथ अवश्य मिलाना चाहिए| शास्त्रों के अनुसार अकेले दही खाने से उसकी चिकनाहट के कारण यह अभिष्यंद होती है यानी कि इससे नाड़ियां अवरोधित होती हैं| शहद मिलाने से दही का यह दोष चला जाता है साथ ही इसके कफ कारक दोष में भी कमी आ जाती है|



Week: 29

दही को अल्प मात्रा में सेवन करना चाहिए यानी एक बार में 50-100 ग्राम दही ही खानी चाहिए. शक्कर मिलाया हुआ दही श्रेष्ठ माना जाता है| इस प्रकार भोजन के साथ ली गयी दही भोजन में रूचि पैदा करती है और भोजन को पचाने में मदद करती है| गाय के दूध से बनी दही को श्रेष्ठ माना गया है|



Week: 28

दही को अल्प मात्रा में सेवन करना चाहिए यानी एक बार में 50-100 ग्राम दही ही खानी चाहिए. शक्कर मिलाया हुआ दही श्रेष्ठ माना जाता है| इस प्रकार भोजन के साथ ली गयी दही भोजन में रूचि पैदा करती है और भोजन को पचाने में मदद करती है| गाय के दूध से बनी दही को श्रेष्ठ माना गया है|


  • सद्ध: (यानी कि instant) शुक्र वर्धक होने के कारण, वयस्कों के लिए रात में दूध पीना अच्छा होता है |
  • बच्चों को दूध दिन में भी दिया जा सकता है क्योंकि बच्चे दिन भर खेल कूद में लगे रहते हैं अतः दूध का कफ-कारक प्रभाव देखने को नहीं मिलता है. जबकि बड़ों में शारीरिक श्रम के अभाव में दूध, दही, लस्सी इत्यादि कफ-कारक पदार्थों का प्रातः कालीन सेवन सुस्ती देने वाला होता है |

Week: 27

किसी भी व्यक्ति के लिए रात्रि में दूध पीना श्रेष्ठ माना गया है| दूध कफ वर्धक होने के कारण प्राकृतिक निद्रा जनक माना गया है अर्थात रात्रि में दूध के सेवन से अच्छी नींद आ जाती है |


  • सद्ध: (यानी कि instant) शुक्र वर्धक होने के कारण, वयस्कों के लिए रात में दूध पीना अच्छा होता है |
  • बच्चों को दूध दिन में भी दिया जा सकता है क्योंकि बच्चे दिन भर खेल कूद में लगे रहते हैं अतः दूध का कफ-कारक प्रभाव देखने को नहीं मिलता है. जबकि बड़ों में शारीरिक श्रम के अभाव में दूध, दही, लस्सी इत्यादि कफ-कारक पदार्थों का प्रातः कालीन सेवन सुस्ती देने वाला होता है |

Week: 26

कच्चा दूध कभी नहीं पीना चाहिए – क्योंकि यह दूध अभिष्यंदी यानी कि शरीर के channels को block करने वाला एवं गरिष्ठ होता है यानी कि कठिनाई से पचता है| इसी प्रकार अधिक उबाल दिया गया दूध भी अभिष्यंदी यानी कि शरीर के channels को block करने वाला एवं अत्यंत गरिष्ठ यानी कि पचने में नहुत मुश्किल होता है| हृदय रोग से पीड़ित रोगी इन दो बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखें|


Week: 25

आयुर्वेद के अनुसार दूध पीने का सही तरीका इस प्रकार से है – दूध में आधा पानी मिलाएं एवं हल्दी अथवा सोंठ अथवा पिप्पली का थोड़ा सा पाउडर या टुकड़ा डाल कर उबालें| जब पानी जल जाए तो इसे चान कर पीयें| इस प्रकार युक्ति पूर्वक गर्म किया गया दूध पचने हल्का होता है तथा शरीर में किसी प्रकार के भारीपन को पैदा नहीं करता|


Week: 24

ध्यान दें कि फ्रिज में रखा या पैक्ड food, कोल्ड स्टोरेज के कारण या preservatives के कारण सड़ता नहीं है लेकिन उसे ताज़ा बिलकुल नहीं कहा जा सकता| आपको जान कर हैरानी होगी कि आयुर्वेद में बासी खाने को शरीर में वात दोष प्रकोप का मुख्य कारण माना गया है एवं वात दोष प्रकोप को रोगों की उत्पत्ति का मुख्य कारण|


Week: 23

आहार ही किसी भी ब्यक्ति को स्वस्थ रखने में सबसे बड़ा माध्यम होता है| इसी कारण भोजन के ठीक नहीं होने पर अथवा ठीक प्रकार से नहीं लेने पर कोई भी ब्यक्ति कमजोर होने लागता है एवं बीमार पड़ जाता है| ऐसे में भोजन संबंधी अनिमितताओं यानी कि गलतियों को ठीक करना ही शारीरिक कमजोरी अथवा रोगों से मुक्ति का सबसे सरल, प्राकृतिक एवं हानि रहित मार्ग होता है| दुर्भाग्य से आज कल हम ऐसा ना करके प्रायः दवाओं के जाल में फंसते चले जाते हैं|


Week: 22

भोजन के लगभग आधा घंटा पहले ताजे अदरक के एक छोटे से टुकड़े को नमक मिला कर खाने से भूख खुल कर लग जाती है और खाना भी आसानी से पच जाता है| इसी प्रकार भोजन के बाद १/४ चम्मच की मात्रा में अजवाइन अथवा सौंफ खा लेने से पेट में आने वाले भारीपन अथवा गैस आदि की संभावना समाप्त हो जाती है|


Week: 21

ध्यान रखे कि सही तरीके से लिया गया संतुलित भोजन ही –
    अ) किसी भी व्यक्ति के शारीरिक विकास के लिए
    ब) दिन प्रतिदिन होने वाले सभी शारीरिक एवं मानसिक कार्यों के लिए आवश्यक उर्जा की पूर्ति में एवं
    क) स्वास्थय संरक्षण में प्रधान कारण होता है| अतः भोजन के ठीक नहीं होने से अथवा गलत तरीके से लेने पर कोई भी व्यक्ति लगातार कमजोर होता जाता है और बीमार भी पर सकता है|


Week: 20

ध्यान दें कि चिंता, दुख, भय, क्रोध एवं शोक ग्रस्त व्यक्ति में सही मात्रा में सही समय पर खाया गया सुपाच्य आहार भी ठीक से नहीं पचता| अतः ऐसी अवस्था होने पर यथा संभव अति अल्प मात्रा में भोजन करें या केवल तरल पदार्थों का ही सेवन करें|


Week: 19

ध्यान दें कि रोगोत्पादक कच्चा अन्न रस यानी कि आम रस और सभी रोगों की प्रारम्भिक अवस्था यानी की अजीर्ण, केवल अधिक मात्रा में अथवा खराब गुणवत्ता वाले भोजन करने से ही उत्पन्न नहीं होती बल्कि गलत समय पर गलत तरीके से एवं गलत संयोग से खाए गए भोजन से भी यह स्थिति पैदा हो सकती है| आयुर्वेद के अनुसार अजीर्ण यानी अपच की स्थिति को प्रायः सभी रोगों की शुरुआत का मूल कारण माना गया है|


Week: 18

कम मात्रा में किया गया भोजन शरीर को उतनी क्षति नहीं पहुंचाता जितनी की अधिक मात्रा में किया गया गया भोजन| आयुर्वेद के सभी आचार्यों के अनुसार वह व्यक्ति जो अधिक मात्रा में भोजन करता है उसके शरीर में वात, पित्त आदि त्रिदोष प्रकुपित होकर शरीर में अनेकों रोगों को उत्पन्न कर देते हैं|


Week: 17

भोजन पकाने में अथवा सलाद, फल इत्यादि पर डालने में हमेशा सेंधा नमक का प्रयोग करना चाहिए| सेंधा नमक भोजनमें रूचि उत्पन्न करने वाला, पाचक अग्नि को बढाने वाला, शरीर के तीनों दोषों को balance में रखने वाला तथा शरीर में गर्मी ना उत्पन्न करने वाला होता है इसलिए इसे विभिन्न प्रकार के नमकों में सर्वोत्तम माना गया है|


Week: 16

दही की तासीर जिसे हम सामान्यतः ठंडा मानते हैं, वास्तव में गर्म होती है| इसलिए शास्त्रों के अनुसार गर्मियों में दही का खाना नुक्सान दे सकता है| अधिक मात्रा में सेवन करने पर दही हमारे रक्त को दूषित करती है| साथ ही शरीर में कफ, मेद (fat) एवं सूजन को बढाने वाली होती है|


Week: 15

आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि हेमन्त ऋतू यानी कि early winter, शिशिर ऋतू यानी कि late winter एवं वर्षा ऋतू यानी कि rainy season में दही का सेवन प्रायः हितकर होता है| इसके विपरीत, ग्रीष्म ऋतू यानी कि summer season, शरद ऋतू यानी कि autumn तथा वसंत ऋतू यानी कि spring में दही का सेवन प्रायः अच्छा नहीं होता| दुर्भाग्य से वर्तमान में हम शास्त्रों के निर्देशोंके विपरीत तरीके से दही का सेवन कर रहे हैं|


Week: 14

हमेशा ध्यान रखें कि तेल घी आदि के अधिक प्रयोग से बने आहार द्रव्य यानी की fried food के बाद जल का सेवन नहीं करना चाहिए| ऐसा करने पर भोजन ठीक से नहीं पचता एवं गैस, एसिडिटी, कब्ज़ इत्यादि पेट के रोगों की संभावना बन जाती है| फ्राइड food खाने के बाद कोई भी व्यक्ति अल्प मात्रा में गर्म जल का सेवन कर सकता है|


Week: 13

शहद को पसंद करने वाले या प्राय: खाने वाले व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए कि शाहद को गर्म करके कभी ना खाएं, गर्म चीजों के साथ कभी ना खायें, गर्म समय में कभी ना खाएं, गर्मी सी पीड़ित होने पर ना खाएं और यहाँ तक कि शहद खा कर ऊपर से गर्म जल भी ना पीयें|


Week: 12

दूध के साथ खट्टी चीजें जैसे नीम्बू, संतरा, करोंदा, खट्टा अनार, आंवला, इमली, खट्टा आम इत्यादि नहीं खाना चाहिये| साथ ही उड़द एवं कुल्थी की दाल, सेम, मूली, लहसुन, सहजन एवं तुलसी को भी दूध साथ नहीं खाना चाहिए|


Week: 11

शास्त्रों के अनुसार मांसाहार के साथ शहद, तिल, गुड़, दूध, उड़द की दाल, मूली और अन्कुरित धान्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, ऐसा करने वाले व्यक्ति की आँखों की रौशनी कमजोर होती जाती है, सुनने की शक्ति कम होती जाती है, शरीर कमजोर होता जाता है, शरीर कांपने लगता है एवं वाणी भी अस्पष्ट हो जाती है|


Week: 10

ध्यान दें कि साथ में खाए जाने वाले भोज्य पदार्थ गुण के आधार पर, समय के आधार पर अथवा मात्रा के आधार पर एक दुसरे के परस्पर विरोधी ना हों| उदाहरण के तौर पर मांस और दूध को एक साथ नहीं लेना चाहिए, विशेष रूप से मछली और दूध को तो बिलकुल नहीं| शीत काल में ठंडी चीजें और उष्ण काल में गर्म चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए| इसी प्रकार शहद और घी को बराबर मात्रा में मिला कर नहीं खाना चाहिए|


Week: 9

पेट के रोग जैसे कब्ज़, एसिडिटी, गैस, irritable bowel syndrome आदि से पीड़ित व्यक्ति को, खांसी कुकाम एवं श्वास रोग से पीड़ित व्यक्ति को, मधुमेह यानी डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को, सूजन, कमजोरी एवं खून की कमी से पीड़ित व्यक्ति को जल का सेवन कम से कम करना चाहिए|


Week: 8

किसी भी बीमारी पीड़ित रोगी को अथवा कमजोर व्यक्ति को कच्चा पानी यानी की unboiled water कम मात्रा में भी नहीं पीना चाहिए| ऐसा करने से उसके शरीर में रोग उत्पादक दोष कुपित होकर उसे और अधिक बीमार कर देते हैं|


Week: 7

भोजन से पहले जल नहीं पीना चाहिए| ऐसा करने से पाचक अग्नि मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर होता जाता है| पूरा भोजन करके अंत में भी जल नहीं पीना चाहिए, ऐसा करने से शरीर मोटा होता जाता है| भोजन से साथ अल्प मात्रा में धीरे धीरे जल का सेवन करने से शरीर की धातुएं सम्यक बनी रहती है और अन्न भी आराम से पाच जाता है|


Week: 6

विभिन्न प्रकार नमक में सेंधा नमक, विभिन्न प्रकार के चावलों में शाली एवं शस्तिक चावल, विभिन्न दालों में मूंग की दाल, फलों में आंवला फल, आटों में जौ का आटा, दूधों में गाय का दूध और मीठे में मधु यानी की शहद सर्वोत्तम सबसे अच्छा माना गया है|


Week: 5

यावहारिक रूप से की भी व्यक्ति को पेट भर के भोजन नहीं खाना चाहिए और ना ही भोजन करके पेट भर पानी पीना चाहिए| इस प्रकार खाया गया खाना ठीक से नहीं पचता और अपच संबंधी अनेको रोग शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं|


Week: 4

कोई भी व्यक्ति अपने द्वारा खाए गए खाने को ठीक से पचा पा रहा है इसका निर्धारण शरीर में हल्केपन की अनुभूति, कार्य करने का उत्साह, सुगमता से सही समय पर मल-मूत्र की प्रवृति का होना एवं सही समय पर प्राकृतिक रूप से भूख और प्यास का लगना, इत्यादि लक्षणों से कर सकता है|


Week: 3

किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के लिए आहार की सही मात्रा कितनी हो यह उसकी पाचक अग्नि के बल से निर्धारित होता है| कहने का अभिप्राय यह है कि जितनी मात्रा में कोई व्यक्ति अन्न को अच्छे प्रकार से पचा सके उतनी ही मात्रा को उस व्यक्ति के लिए आहार की सही मात्रा मानना चाहिए|


Week: 2

आज के परिवेश में यदि आहार द्रव्यों की गुणवत्ता की बात करें तो दुर्भाग्य से हमारा भोजन प्राकृतिक कम और रासायनिक एवं मिलावट-युक्त अधिक हो गया है| इस प्रकार के भोज्य पदार्थों से ना केवल हम पोषण-आभाव में हैं बल्कि अनेक रोगों से घिरते भी चले जा रहे हैं| अतः वह कोई भी व्यक्ति जो अपने अच्छे स्वास्थय को बनाए रखना चाहता है उसे भोज्य पदार्थों को प्राकृतिक एवं शुद्धतम रूप में प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए|


Week: 1

किसी भी व्यक्ति को भोजन करते हुए ५ बातों का ध्यान रखना चाहिए:


  • आहार की गुणवत्ता का
  • आहार की मात्रा का
  • आहार द्रव्यों के संयोग का
  • खाने के सही समय का
  • खाना खाने की सही विधि का

इन पांच बातों मे से किसी भी तरह की अनियमितता या त्रुटि से शरीर को आहार का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता|