नवरात्र का दूसरा दिन, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा आज
शारदीय नवरात्र का पावन त्योहार मंगलवार से अत्यंत श्रद्धा व उत्साह के साथ प्रारंभ हो गया है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व मंगलवार 13 अक्टूबर से 22 अक्टूबर तक है। 22 अक्टूबर के दिन दशहरा है। मंगलवार को पूरे भक्तिभाव से घरों, मठों-मंदिरों में शुद्धता एवं पवित्रता के
शारदीय नवरात्र का पावन त्योहार मंगलवार से अत्यंत श्रद्धा व उत्साह के साथ प्रारंभ हो गया है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व मंगलवार 13 अक्टूबर से 22 अक्टूबर तक है। 22 अक्टूबर के दिन दशहरा है। मंगलवार को पूरे भक्तिभाव से घरों, मठों-मंदिरों में शुद्धता एवं पवित्रता के साथ कलश स्थापित किए गए। कई श्रद्धालुओं ने अपने-अपने घरों में भी कलश स्थापित कर देवी की पूजा-अर्चना की। आज नवरात्र की द्वितीया तिथि हैं,आज के दिन ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा की जाती हैं, ब्रह्मचारिणी देवी ने भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी यानी ब्रह्मचारिणी नाम से पुकारा गया हैं|
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की पूजा की जाती है। उन्हें त्याग और तपस्या की देवी माना जाता है। शास्त्रों में मां ब्रह्मचारिणी को वेद-शास्त्रों और ज्ञान की ज्ञाता माना गया है। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत भव्य और तेजयुक्त है। मां ब्रह्मचारिणी के धवल वस्त्र हैं। उनके दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित है। शास्त्रों की मान्यता है कि भगवती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर तपस्या की थी। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की। इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ। साधक और योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया है।
श्रद्धालु भक्त और साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। मां दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। मां ब्रहमचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।
जीवन के कठिन संघषों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन "स्वाधिष्ठान "चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
इस मंत्र का करें जाप
या देवी सर्वभूतेषु मां बह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ -हे मां। सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।
ध्यान मंत्र-
" दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ "
इस बार शारदीय नवरात्र की विशेष बात यह है कि मां दुर्गा जी घोड़े पर विराजित होकर आई हैं। और डोली में विदा होंगी। ऐसा होना बहुत ही शुभ माना जाता है। घोड़ा और डोली का संबंध कन्याओं के विवाह से है। ऐसे में कन्या राशि के जातकों के लिए आने वाले नौ दिन बहुत शुभ हैं। शारदीय नवरात्र को छोटी नवरात्रि मानी जाती है। लेकिन इन दिनों मां दुर्गा के भव्य जगरात्रे और भव्य पंडाल के बीच हर्षोल्लास का माहौल हर जगह दिखाई देता है।कन्या राशि की उच्चता के कारण यह समय नया व्यापार और व्यवसाय शुरू करने के उद्देश्य से बहुत ही शुभ है। इन नौ दिनों में उपवास करना, रात्रि जागरण करना वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्व रखता है।
बन रहे हैं ये विशेष योग
वहीं, ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस बार लगभग आठ साल बाद 27 नक्षत्रों में से एक चित्रा नक्षत्र और 28 योग में से एक वैधृति योग का संयोग बन रहा है, यह योग केवल सोलह संस्कारों के समय ठीक नहीं माना जाता है। यदि यह चारों नवरात्र में से किसी भी नवरात्र में पड़े तो शुभ ही रहेगा। मां दुर्गा हमेशा अपने बच्चों पर कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं। ऐसे में नवरात्र में किसी भी दिन पड़ने वाले योग अशुभ नहीं माने जाते। इस बारे में देवी महात्म्य में विस्तार से बताया गया है।