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बिहार चुनावः जहानाबाद टू पटना वाया औरंगाबाद

दिल में अरमान पर जुबान पर चुप्पी और आंखों में सवाल। जहानाबाद से औरंगाबाद और वहां से अरवल, पालीगंज, बिक्त्रम होते हुए पटना तक लगभग ढ़ाई सौ किलोमीटर के सफर में यह अहसास सामान्य है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2015 01:37 AM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2015 01:45 AM (IST)
बिहार चुनावः जहानाबाद टू पटना वाया औरंगाबाद

आशुतोष झा, पटना। दिल में अरमान पर जुबान पर चुप्पी और आंखों में सवाल। जहानाबाद से औरंगाबाद और वहां से अरवल, पालीगंज, बिक्त्रम होते हुए पटना तक लगभग ढ़ाई सौ किलोमीटर के सफर में यह अहसास सामान्य है। राणा प्रताप के गौरव से खुद को जोड़ने वाले चित्तौड़गढ़ (औरंगाबाद) को थोड़ा अपवाद मानें तो सामान्यतया मतदाता केवल यह बताकर चुप हो जाता है कि जीने के लिए थोड़े और की जरूरत है। कौन जीतेगा? यह सवाल सुनकर चुप ही रहना पसंद करता है, थोड़ी आशंका है कि पता नहीं सामने वाला किसी दल का समर्थक तो नहीं। थोड़ा आश्वस्त होता है तो सिर्फ इतना बोलकर चुप हो जाता है कि नीतीश ने अच्छा काम किया और उन्हें नरेंद्र मोदी पर भरोसा है।

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दो तीन संदर्भ रोचक हैं- जहानाबाद में एक छोटी सी मिठाई का दुकानदार दीपक कुमार इतना चुप है कि वह इससे भी अनजान बनने की कोशिश करता है कि वोटिंग कब है। उसे डर था कि कहीं मैं किसी खास दल का समर्थक तो नहीं। थोड़ा आश्वस्त होता है तो कहता है- विकास हुआ है लेकिन हमारे लिए तो कानून व्यवस्था ज्यादा जरूरी है। रोटी एक कम मिले लेकिन घर परिवार सुरक्षित रहना चाहिए।

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डोभी से औरंगाबाद के लिए फोरलेन पर चढ़ने से पहले चाय की दुकान पर बैठा एक व्यक्ति जयराम पासवान चुनाव के बाबत पूछे जाने पर बड़ी मासूमियत से पूछता है- कुछ आप ही बताइए कि किसको वोट किया जाना चाहिए। मैं कुछ और सवाल पूछता हूं तो वह दूसरे की ओर इशारा कर देता है। दूसरा व्यक्ति अपनी पसंद बताने की बजाय केवल यह बताता है कि उस सीट से कौन कौन लड़ रहा है। कौन बाहरी है और कौन क्षेत्र का।

अरवल के केकर गांव में चाय की दुकान पर बैठे कुछ मजदूर व खेतिहर बहुत देर तक चुप रहते हैं। फिर कहते हैं- हर पार्टी अपनी अपनी बात कह रहा है लेकिन हमें भी तो पता है। इतिहास को कोई मिटाता है क्या? इतिहास क्या है.? जवाब में वे हंसकर रह जाते हैं।

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औरंगाबाद की बात कुछ और है। नक्सल प्रभावित इस जिले में खासकर अगड़ी जाति के व्यक्ति खुलकर बोलते दिख सकते हैं। औरंगाबाद में पड़ने वाले प्रसिद्ध सूर्यदेव के प्राचीन मंदिर के पास ही कुछ वर्ष पहले नक्सलियों ने ब्लाक आफिस बम से उड़ा दिया था। तब से अब देव का पूरा क्षेत्र नक्सलियों की अपील पर कभी भी बंद कराया जा सकता है। बिहार के पर्यटन मानचित्र पर देव का इलाका पड़ता है लिहाजा सड़कें चकाचक हैं। लेकिन लोगों के अरमान इतने भर से पूरे नहीं हुए हैं। एक व्यक्ति कहते हैं- सड़क 'मंजिल' तक तो पहुंचनी चाहिए। सड़क के रास्ते विकास का दूसरा विकल्प भी खुलना चाहिए। हमें उसी की तलाश है।'

इस पूरे क्षेत्र में दूसरे चरण में 16 अक्टूबर को मतदान है। पालीगंज और बिक्रम अभी नामांकन और नामांकन वापसी का दौर ही पूरा कर पाया है। लिहाजा शुरूआती उत्साह तो है, लेकिन मन नहीं बना है। पूछने पर सिर्फ इतना जवाब आता है- अच्छे भविष्य की इच्छा हर किसी की होती है। जो हमारे लिए अच्छा होगा, वहीं वोट देंगे।

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