'पुरुष संत की कब्र के करीब भी महिलाओं का आना महापाप'
हाजी अली दरगाह के ट्रस्टियों ने बांबे हाईकोर्ट को बताया कि इस्लाम में किसी पुरुष संत की मजार के आसपास भी महिलाओं का जाना वर्जित है। दरगाह के ट्रस्ट ने जस्टिस वीएम कनाडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ को सोमवार को एक पत्र देते हुए बताया कि हाल में बांबे हाईकोर्ट
मुंबई। हाजी अली दरगाह के ट्रस्टियों ने बांबे हाईकोर्ट को बताया कि इस्लाम में किसी पुरुष संत की मजार के आसपास भी महिलाओं का जाना वर्जित है। दरगाह के ट्रस्ट ने जस्टिस वीएम कनाडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ को सोमवार को एक पत्र देते हुए बताया कि हाल में बांबे हाईकोर्ट के फैसले के संबंध में एक बैठक की गई है। और सभी ने सर्वसम्मति से यह फैसला लिया है कि महिलाओं को इस पवित्र स्थल पर आने की इजाजत न दी जाए।
एक याचिका की सुनवाई के दौरान दरगाह के ट्रस्ट की ओर से दाखिल किए गए पत्र में कहा गया है कि ट्रस्टी इस बात पर एकमत हैं कि इस्लाम के अनुसार पुरुष संत की कब्र के करीब भी महिलाओं का आना महापाप है। पत्र में दलील दी गई है कि संविधान के कानून और खासकर अनुच्छेद 26 के तहत ट्रस्ट को अपने मूलभूत अधिकारों के तहत अपने धार्मिक मामलों को अपने मुताबिक चलाने की आजादी है।
किसी तीसरी एजेंसी का दखल गैरजरूरी है। दरगाह के आसपास न जाने के फैसले को महिला संतों ने भी स्वीकार किया है। मकबरे के एकदम करीब महिलाओं को नहीं जाने देना यह उनकी अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी है। यह फैसला महिलाओं के हित में लिया गया है। हाजी अली दरगाह ट्रस्ट के इस पत्र पर सुनवाई 17 नवंबर को होगी।
दरगाह के मकबरे के पास महिलाओं को जाने देने से रोकने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका कोर्ट ने पहले कहा था कि अगर इस मुद्दे को प्रबंधन ने तुरंत नहीं सुलझाया तो वह इस मामले से जुड़े सभी पक्षकारों का पक्ष जानकर उचित निर्णय लेंगे। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि कुरान में लैंगिक न्याय की व्यवस्था है। दरगाह के नए मानक हदीथ का विरोध करते हैं। हदीथ के मुताबिक महिलाओं का मकबरे पर जाना मना नहीं है। याचिकाकर्ता के वकील राजू मोरे ने दलील दी कि अन्य दरगाहों और धार्मिक स्थलों पर महिलाओं का जाना वर्जित नहीं है। उन्होंने कहा कि मुंबई के माहिम में स्थित ऐतिहासिक मखदूम शाह की दरगाह में मजार तक महिलाएं जा सकती हैं।