सुप्रीम कोर्ट-केंद्र के जंग में फंसी हाईकोर्ट के 397 जजों की नियुक्ति
जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच खींचतान ऐसे समय पर शुरू हुई है जब देश के 24 हाईकोर्ट में तकरीबन 397 जजों के पद खाली हैं। जजों की नियुक्तियों में देरी का असर सिर्फ इससे ही पता चल जाता है कि आठ हाईकोर्ट में
नई दिल्ली। जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच खींचतान ऐसे समय पर शुरू हुई है जब देश के 24 हाईकोर्ट में तकरीबन 397 जजों के पद खाली हैं। जजों की नियुक्तियों में देरी का असर सिर्फ इससे ही पता चल जाता है कि आठ हाईकोर्ट में तो एक्टिंग चीफ जस्टिस काम कर रहे हैं।
इतना ही नहीं, अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इन रिक्तियों को भरने के लिए पुराने कॉलेजियम सिस्टम के तहत होगी या फिर जैसा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस सिस्टम में सुधार करने के बाद नियुक्तियां होंगी।
सभी हाईकोर्ट की साइट्स से जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, हाईकोर्ट में जजों की 1017 पोस्ट्स में से 397 पद खाली पड़े हैं। आपको बता दें कि देशभर की अदालतों में लाखों केस पेंडिंग पड़े हैं, करीब 39 फीसद जजों की कुर्सियां खाली रहना चिंता की बात है।
सबसे बुरे हालात उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट के हैं। 160 जजों के मुकाबले यहां सिर्फ 75 जज ही पूरी कोर्ट का काम देख रहे हैं जबकि 85 जजों की नियुक्तियां की जानी है जो सिटिंग जजों की संख्या से भी ज्यादा है।
कुछ ऐसी ही स्थिति कर्नाटक व राजस्थान हाईकोर्ट की भी है। यहां भी जजों की तकरीबन आधी सीटें खाली हैं। इसके साथ ही सात हाईकोर्ट ऐसे हैं, जहां जजों के खाली पदों की संख्या 40 फीसद से ज्यादा ही है। इनमें गुजरात, आंध्रप्रदेश व मध्यप्रदेश शामिल हैं। दूसरी तरफ बॉम्बे और पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में जजों के 33-33 पद खाली पड़े हैं। मद्रास हाईकोर्ट में भी 23 जजों के पद खाली हैं, जिनपर नियुक्तियां होनी हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में सिक्किम, मेघालय और त्रिपुरा ही ऐसे राज्य हैं, जहां जजों के सभी पद भरे हुए हैं। हालांकि, यहां पर जजों की जरूरत ही 3-4 है। इतना ही नहीं, बॉम्बे, आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, पटना, पंजाब व हरियाणा, राजस्थान और गुवाहाटी हाईकोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस के जरिये काम चलाया जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि ये देश के सबसे बड़े हाईकोर्ट में गिने जाते हैं। इन अहम अदालतों में जजों की कमी मामलों के निपटारों पर बेहद बुरा असर डाल रही है।
[साभार-नई दुनिया]