सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बोले रविशंकर, कहा- संसदीय संप्रुभता को झटका
जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की व्यवस्था करने वाले कानून को खारिज करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने केंद्र सरकार को हैरानी में डाल दिया है। कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने जहां याद दिलाया है कि यह कानून जनता की इच्छा को ध्यान में रखते
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की व्यवस्था करने वाले कानून को खारिज करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने केंद्र सरकार को हैरानी में डाल दिया है। कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने जहां याद दिलाया है कि यह कानून जनता की इच्छा को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था। वहीं पूर्व कानून मंत्री और अब संचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने इसे संसदीय संप्रभुता को झटका भी बताया है। जल्दी ही सरकार इस पर अपने अगले कदम के बारे में फैसला करेगी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसले आने के कुछ समय के अंदर ही कानून मंत्री कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा कि इस फैसले से वे हैरान हैं। साथ ही उन्होंने याद दिलाया, 'लोगों की इच्छा सुप्रीम कोर्ट के सामने लाई गई थी। लोकसभा और राज्य सभा ने इस बिल को सौ फीसदी समर्थन किया था। 20 राज्यों की विधायिका ने भी इसे पास किया था।' इस फैसले के बाद सरकार क्या करेगी, यह पूछने पर उन्होंने कहा, 'लोगों की इच्छा को तो सरकार ने सामने रख दिया था। अब जहां तक आगे के कदम का सवाल है, फैसले को विस्तार से पढ़ने, आदरणीय प्रधानमंत्रीजी से मशविरा करने और कानूनी विशेषज्ञों तथा दूसरों से राय लेने के बाद ही कुछ बता सकूंगा।'
यह कानून पारित होने के समय कानून मंत्री रहे रवि शंकर प्रसाद ने इस बारे में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद बताया है कि वह तीन नवंबर से कोलेजियम व्यवस्था में सुधार के उपायों को सुनेगा। इससे साफ जाहिर है कि इस व्यवस्था में कुछ गड़बड़ी है। यह देश में न्यायिक सुधार के अभियान का हिस्सा था, जिसे ना सिर्फ संसद बल्कि कानूनविदों का भी समर्थन था। साथ ही उन्होंने ध्यान दिलाया कि यह कानून अचानक नहीं लाया गया था। संविधान समीक्षा आयोग, प्रशासनिक सुधार आयोग और संसदीय स्थायी समितियों ने अपनी रिपोर्ट में इसके लिए अनुशंसा की थी।
उन्होंने कहा, 'इसके लिए संसद में सभी की सहमति थी। सिर्फ राज्य सभा में वोटिंग के दौरान एक वाकआउट हुआ था। 20 राज्यों की विधानसभाओं ने इसे स्वीकृत किया था। इसी तरह वर्ष 1993 में कोलेजियम व्यवस्था लाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लिखने वाले जज जेएस वर्मा ने और जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने भी कहा था कि कोलेजियम व्यवस्था की गंभीर समीक्षा की जरूरत है।'