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जज ही करेंगे जजों की नियुक्ति, सुप्रीम कोर्ट ने NJAC को किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग एक्ट की संवैधानिकता पर आज अपना फ़ैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के दो दशक पुराने कॉलेजियम सिस्टम की जगह लेने वाले एनजेएसी अधिनियम को असंवैधानिक घोषित

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Fri, 16 Oct 2015 10:47 AM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2015 08:31 AM (IST)
जज ही करेंगे जजों की नियुक्ति, सुप्रीम कोर्ट ने NJAC को किया खारिज

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग एक्ट की संवैधानिकता पर अपना फ़ैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के दो दशक पुराने कॉलेजियम सिस्टम की जगह लेने वाले एनजेएसी अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया।

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इसके साथ ही अदालत ने साफ कर दिया है कि जजों की नियुक्ति पहले की तरह कॉलेजियम सिस्टम से ही होगी।

इस मामले पर केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के पूरे फैसले को पढ़ने के बाद ही कोई प्रतिक्रिया दे सकेंगे। और पीएम के साथ साथ कानून के जानकारों से भी इस मामले पर चर्चा की जाएगी।

तो वहीं दूर संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन जिन परिस्थितियों में ये कानून पास किया गया था उसे भी नजर में रखना बहुत जरूरी है।

केंद्र की मोदी सरकार ने अगस्त, 2014 में NJAC एक्ट बनाया था। यह एक्ट संविधान में संशोधन करके बनाया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि NJAC बनाने वाले कानून से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन होता है।5 जजों की संविधान पीठ ने इसे खारिज कर दिया।

पांच जजों की पीठ ने 15 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस पीठ में जस्टिस जे. एस. केहर, जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस कुरियन जोजेफ और जस्टिस ए. के. गोयल शामिल थे।

शीर्ष कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रणाली 99वें संविधान संशोधन से पहले से ही संविधान में मौजूद रही है। वहीं, उच्चतम न्यायालय ने एनजेएसी को लाने के लिए 99वें संवैधानिक संशोधन को असंवैधानिक एवं निरस्त घोषित किया।

इस फैसले से यह साफ हो गया कि जजों की नियुक्ति अब कॉलेजियम सिस्टम से ही होगी। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मामले को बड़े बेंच को भेजने की अर्जी को भी खारिज कर दिया। गौर हो कि सरकार ने पिछले साल जजों की नियुक्ति के लिए एनजेएसी का गठन किया था।

इससे पहले, न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 99वें संविधान संशोधन और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 31 दिन तक बहस सुनने के बाद 15 जुलाई को सुनवाई पूरी की थी। इस नए कानून को चुनौती देते हुये उच्चतम न्यायालय एडवोकेट आन रिकार्ड एसोसिएशन और अन्य लोगों ने तर्क दिया था कि न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति के बारे में नया कानून असंवैधानिक है और इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।

दूसरी ओर, केन्द्र ने इस नये कानून का बचाव करते हुये कहा था कि दो दशक से अधिक पुरानी न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था में कई खामियां थीं। इस मामले में उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन ने केन्द्र का समर्थन किया।

इस कानून का 20 राज्य सरकारों ने समर्थन किया है जिन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून और संविधान संशोधन की पुष्टि की है। इस नये कानून में एक प्रावधान छह सदस्यीय राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग में दो प्रबुद्ध व्यक्तियों को शामिल करने से संबंधित है।

इस आयोग में प्रधान न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश और केन्द्रीय कानून मंत्री को शामिल किया गया है। कानून में प्रावधान है कि दो प्रबुद्ध व्यक्तियों का मनोनयन प्रधान न्यायाधीश, प्रधान मंत्री और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता या प्रतिपक्ष का नेता नहीं होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता वाली समिति करेगी।

आपको बता दें कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और तबादले के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग एक्ट बनाया था जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

विवाद से जुड़ी खास बातेंः

22 साल से सुप्रीम कोर्ट का कोलेजियम जजों की नियुक्तियां करता रहा है। मोदी सरकार के कमीशन लाने के बाद करीब 400 जजों की नियुक्तियां रुकी पड़ी हैं।


NJAC के बाद कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गईं और कहा गया कि यह सिस्टम न्यायपालिका की आजादी में दखल है और गैरसंवैधानिक है।


वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि यह सिस्टम कोलेजियम से कहीं ज्यादा पारदर्शी है और किसी भी सूरत में न्यायपालिका की आजादी में दखल नहीं है।

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